यह भारत है जहाँ हमेशा शास्त्र ने शस्त्र को जीता है।

यह लोग नक्सलियों के समर्थक है, छंटे हुए कथाकार हैं और कहानियाँ लिखने में माहिर हैं। इन लोगो का चार खुरों वाला नया भगवान् है, कहाँ से आया, कौन लाया, क्या किया इस भगवान् ने कुछ पता नहीं। आर्य - अनार्य का विवाद खड़ा करते हैं। इसके पक्ष में संस्कृत कोट करते हैं बिना यह जाने कि संस्कृत तो आर्यों की भाषा थी। संघ को गाली देते हैं। यहाँ तक कि जिस संघ का कभी हिस्सा नहीं रहे उस पर कवर पेज स्टोरी लिखते हैं। कहने की जरूरत नहीं कि यह लोग जेएनयू वाले लाल सलाम के बौधिक आतंकवाद की उपज हैं। ऐसे तथाकथित “साहब लोग” हमारे देश में बुद्धिजीवी बनते हैं।


शाखा क्या लगने लगी एकदम बौखला गए। तय नहीं कर पा रहे हैं कि वैचारिक प्रतिरोध करें या फिर से मार्क्स की “खूनी क्रांति” लिख दें। पर क्या करें पूरा राष्ट्र केरल तो है नहीं जहाँ जिसकी चाहें हत्या कर दें। माना आपके शास्त्रों में लिखा है कि "सत्ता बन्दूक की नालियों से होकर गुजरती है" पर ये चीन या रूस नहीं है जहाँ कत्ल की नई इबारतें लिखी गई। यह भारत है जहाँ हमेशा शास्त्र ने शस्त्र को जीता है।
यह तो महज एक शुरुआत है। मिर्च अभी और तेज होगी। वामपंथ अभी और बेनकाब होगा। वामपंथ का बौधिक आतंकवाद अब समाप्ति की ओर है। आवाहन हो चुका है। भारत नव निर्माण के पवित्र यज्ञ में आहूति लगना शुरू हो चुकी हैं। हो सके तो आप भी इस यज्ञ हिस्सा बनिए और खुद को शुद्ध कीजिए वरना तय जानिए कि इस बार इतिहास हमारी कलमें लिखेंगी जिसमें वामपंथियों का असल वर्णन विस्तार से होगा।

(लेखक एक विचारक हैं)

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