हिंदी हमारा गौरव

सोचने पर, बोलने पर, लिखने पर, नहीं रही हमें कभी कोई पाबन्दी, क्योंकि हमारे साथ थी हमेशा हिंदी।

हिंदी हमारा गर्व है। हिंदी भाषा विश्व की प्राचीन भाषाओं में से एक है। हिंदी बहुत महत्वपूर्ण है, ये बात सब जानते हैं, परन्तु हिंदी का कितना महत्त्व है, शायद इस बात पर किसी ने कभी गौर नहीं किया। हम आज जो अच्छे हैं, हिंदी की वजह से हैं। हिंदी वो है जिसने हमें एक सोच दी, हमें बोलने के लिए शब्द दिए और शायद इसके बिना किसी भी मनुष्य का जीवन संभव नहीं है। हिंदी ने जो हमें दिया है उसका ऋण हम जीवन भर नहीं चूका सकते।

आज़ादी के बाद सन 1950 में भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था। अनुच्छेद 343(1) के तहत ये स्पष्ट है की भारत की राजभाषा हिंदी है। 1949 से भारत में हर वर्ष 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। यूँ तो अंग्रेजी भाषा के बढ़ते चलन और हिंदी की अनदेखी को रोकने के लिए ये दिवस मनाया जाता है, परन्तु वास्तविक रूप में यदि गौर से देखा जाये तो हिंदी चाह कर भी अनदेखी नहीं की जा सकती। हिंदी हमारी जीवन शैली में इस हद तक समाई है की हम पूरी तरह से हिंदी से जुड़ चुके हैं और हिंदी के साथ हमारा कभी न टूटने वाला बंधन बन चूका है। आज भले ही अंग्रेजी भाषा का बोलने के लिए अधिक इस्तेमाल किया जा रहा हो लेकिन बोलने से पहले की प्रक्रिया सोचना है और हम यदि थोड़ा विचार करें तो जान जाएंगे की हम सब हिंदी में ही सोचते हैं। अंग्रेजी के बढ़ते चलन के बावजूद आज भी बाजार में विज्ञापन हिंदी में आते हैं। उदाहरण के तौर पर ‘‘पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें‘‘ इससे स्पष्ट है कि हमारे मन को यदि सबसे ज्यादा प्रभावित कोई भाषा करती है तो वो हिंदी है। मान्यता है कि सोशल मीडिया में बातचीत के लिए लोग अंग्रेजी कीबोर्ड का प्रयोग करना ज्यादा आसान और अच्छा समझते हैं और इससे हिंदी भाषा लुप्त हो रही है लेकिन यदि अलग तरह से देखा जाये तो ये भी एक पहलु है कि अंग्रेजी कीबोर्ड होने पर भी लोग उसमें अंग्रेजी अक्षर के बावजूद भी लोग उससे हिंदी शब्द लिख लेते हैं। किसी को अपने मन की बात यानी कोई भी विषय दुसरे व्यक्ति को स्पष्ट रूप से समझाना हो तो हिंदी भाषा ही स्पष्टता के लिए सही रहती है और ये बात सबके मन को पता है। भाषण प्रतियोगिता के समय हम लोगों पर हिंदी भाषा में दिए गए भाषण का प्रभाव अंग्रेजी भाषा में दिए गए भाषण के प्रभाव से कई ज्यादा रहता है।

हिंदी हमारे मन मस्तिष्क में बस चुकी है। हम चाहे जितनी भाषाएं सीख लें परन्तु हिंदी का स्थान कोई भाषा नहीं ले सकती। कहा जाता है कि हिंदी भाषा बोलने वाले को आज के युग में हीन अनुभव करवाया जाता है। ये बात सरासर गलत है। सर्वप्रथम हमें तब तक कोई हीन अनुभव नहीं करवा सकता जब तक हम खुद हीन अनुभव ना करें। जो भी व्यक्ति ये बात करते हैं, उन्हें खुद में सुधार लाने की जरुरत है। भाषा विचारों को दर्शाने का एक माध्यम है। सब को ये हक़ है की वे अपनी इच्छा से कोई भी भाषा सीखें और उपयोग करें परन्तु भाषा की वजह से कोई हीन अनुभव नहीं कर सकता। जिस भी व्यक्ति को हिंदी बोलने से हीन अनुभव होता है, उसमें स्वयं कमी है, उसे हिंदी के स्वयं के जीवन में महत्त्व के बारे में विचार करना चाहिए और खुद को इतना काबिल बनाना चाहिए कि कुछ जड़बुद्धियों की बातों से प्रभावित न हो।

आज विद्यालयों में विदेशी भाषाओं पर हिंदी भाषा से कई अधिक ध्यान दिया जा रहा है।  इससे एक बच्चे की सोचने की क्षमता प्रभावित हो रही है और ये गलत बात है। इस बात पर विचार करना आवश्यक है। हमारी हिंदी भाषा आज अंतरराष्टी्रय स्तर पर बेहद पसंद की जाती है, तो भारतियों का भी कर्त्तव्य बनता है कि हिंदी को संजो कर रखें और इसे सब भाषाओं से ऊपर का दर्जा दें। हिंदी तो हमारे जीवन से जुड़कर अपना कर्त्तव्य निरंतर निभाती आयी है और निभाती भी रहेगी परन्तु समय है व्यक्तियों को हिंदी के प्रति अपना कर्त्तव्य निभाने का। हिंदी भाषा हमारी संस्कृति को दर्शाती है, हिन्दी एक समृद्ध भाषा है और हिंदी ने हमारे लिए इतना किया है कि हमारे जीवन में सभी भाषाओं से ऊपर का दर्जा पाना हिंदी का हक है। हिंदी हमारा गर्व है और इसे सम्मान देना हमारा परम कर्त्तव्य है। आज हर माता पिता को अपने बच्चों को नैतिक शिक्षा के साथ साथ हिंदी का महत्त्व भी समझाना चाहिए। छोटे बच्चों को सबसे पहले हिंदी भाषा ही सीखनी चाहिए ताकि बचपन से ही बच्चे के अंदर हिंदी प्रेम जागृत हो और उसे ज्ञात रहे कि हिंदी का उसके जीवन में शुरू से क्या महत्त्व रहा है।

हिंदी भाषा ने निःस्वार्थ भाव से हमेशा हमारे प्रति अपना कर्त्तव्य निभाया है। हर भारतीय का ये कर्त्तव्य होना चाहिए कि वो हिंदी को निःस्वार्थ प्रेम करे और सदैव संजो कर रखे ताकि आने वाले समय में हिंदी दिवस हिंदी की अनदेखी को हटाने के लिए नहीं बल्कि भारतियों के हिंदी भाषा के प्रति प्रेम और सम्मान को दर्शाने के लिए मनाया जाये।


लेखिका:- वंशिता शर्मा  (हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय)  

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