वर्तमान समय में जहाँ एक तरफ केंद्र सरकार द्वारा मानवतावादी दृष्टिकोण को दर्शाते हुए नागरिकता कानून के रूप में ऐतिहासिक निर्णय लिया गया। इस निर्णय से भारत के तीन पड़ोसी देश (अफगानिस्तान, बंगलादेश और पाकिस्तान) में रहने वाले लाखों अल्पसंख्यक जो वहाँ धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किए गए तथा जिन्होंने प्रताड़ित होने के बाद 31 दिसम्बर, 2014 तक भारत में शरण ली थी वो अब भारत की नागरिकता ग्रहण कर सकते हैं। इस निर्णय का देश का बहुत बड़ा वर्ग स्वागत कर रहा है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ कुछ विपक्षी दल तर्कों को तोड़ मरोड़ कर नागरिक कानून के आड़ में कुतर्क भरा विरोध करते हुए देश की जनता को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं।
कई तथाकथित बुद्धिजीवियों ने "संविधान खतरे में है" तथा "संविधान बचाओ" जैसे शीर्षक बनाकर इस कानून के विरोध बड़े - बड़े आर्टिकल लिख दिए। कहीं भारत की अर्थव्यवस्था के ऊपर खतरा तथा कुछ लोग भारत के मुस्लिम लोगों को इस कानून से खतरा है जैसे कई प्रकार के तर्कों को तोड़ मरोड़ कर इस कानून की आड़ में लोगों को भ्रमित कर देश भर में अराजकता का माहौल खड़ा करने का पुरजोर प्रयास कर रहे हैं। परन्तु इसके पीछे का जो सच है वो लोगों तक पहुंचने नहीं दिया जा रहा। वर्ष 2019 के अक्टूबर में जब अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रथम महिला निदेशक के रूप में क्रिस्टालिना जॉर्जीएवा ने कार्यभार ग्रहण करते समय कहा था वर्तमान समय में 90 प्रतिशत विश्व आज मंदी के दौर से गुजर रहा है। इस खुली अर्थव्यवस्था के दौर में भारत पर भी उसका असर होना स्वभाविक है। फिर भी आज भारत व्यापार करने की सुगमता में अंतरराष्ट्रीय रैंकिग पर 140 वें स्थान से 63वें स्थान पर पहुँच चुका है। परन्तु कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी इसे नागरिकता कानून के साथ जोड़कर नए-नए तर्क बनाकर इस कानून का विरोध कर रहे है।
आज हमें यह समझने की आवश्यकता है कि CAA भारत की प्राचीन परंपरा के अनुरूप ही है। इस कानून से भारत के किसी भी धर्म को मानने वाले को कोई खतरा नहीं है। CAA कानून में सबसे ज्यादा बवाल मुस्लिम समुदाय को लेकर किया जा रहा है जबकि इस पूरे एक्ट में कहीं भी "मुस्लिम'' शब्द का इस्तेमाल तक भी नहीं हुआ है। कुछ लोग इस बात को भारत की धर्म निरपेक्षता के ऊपर चोट बता रहे हैं कि हिन्दू, बौद्ध, सिक्ख ,इसाई, जैन और पारसी को इसमें शामिल किया गया परन्तु मुस्लिम को नहीं। अब इस बात को कुतर्कों के आधार पर तो अनेकों दिशाओं में मोड़ा जा सकता है लेकिन इसकी असल वजह कोई भी वामपंथी और कांग्रेसी स्वीकार नहीं कर रहा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनमोहन सिंह जी ने भी इसी कानून को पारित करने का प्रस्ताव 2003 में तत्कालीन गृह मंत्री आडवाणी जी के समक्ष रखा था। जिसमें बंगलादेश के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की सिफारिश की थी। देश की आजादी के पश्चात महात्मा गांधी जी ने भी 26 सितम्बर, 1947 को प्रार्थना सभा में कहा था कि पाकिस्तान के हिन्दू सिक्ख यदि भविष्य में पाकिस्तान में नहीं रहना चाहे तो वे भारत आ सकते हैं और भारत सरकार का ये कर्तव्य है कि उन्हें केवल भारत में शरण ही नहीं अपितु उनके जीवन को बेहतर करने की व्यवस्था को सुनिश्चित करे। आंकड़े बयां करते हैं कि विभाजन के बाद पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यको को किस तरह की अमानवीय यातनाएं झेलनी पड़ी। या तो जबरदस्ती उनका धर्मांतरण करवा दिया गया या फिर उन्हें लूटपाट कर कई तरीकों से प्रताड़ित किया गया। मनमोहन सरकार के समय एक आंकड़े के अनुसार भारत में पाकिस्तान के लगभग 1 लाख 14 हजार हिंदुओं ने नागरिकता के लिए आवेदन किया था। परन्तु आज वही कांग्रेस जो गांधी जी के आदर्शों पर चलने की बात करती है, उन्हीं महात्मा गांधी जी के उस बात को भुलाकर देश में अराजकता का माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। दूसरी तरफ सुखबीर बादल ने भी संसद में इस बात का जिक्र किया था कि अफगानिस्तान से लगभग 75000 सिक्ख भारत की नागरिकता लेना चाहते हैं।
यह सब बातें स्पष्ट करती हैं कि इन तीन देशों में अल्पसंख्यको को किस तरह की अमानवीय यातनाएं सहनी पड़ी, तमाम तरह के सितम और प्रताड़नाएं सहकर वे लोग भारत की नागरिकता की माँग कर रहे थे ताकि भविष्य में उनकी सन्तानें वो यातनाएँ न सहें। हैरानी तब होती है जब भारत में हर छोटी छोटी बात पर मानवाधिकार का ढिंढोरा पीटने वाले बुद्धिजीवी आज इस घटना पर चुप्पी साधे बैठे हैं। शायद उनके राजनीतिक चश्मे में इन लोगों के ऊपर हुए अत्याचार नजर नहीं आ रहे या फिर उनकी नजरों में ये अल्पसंख्यक मानव नहीं। नागरिकता कानून भारत की उस महान परम्परा को निभा रहा है जिसमें भारत इन तीन देशों में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित हुए लोगों को शरण दे रहा है। बंगलादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के प्रताड़ित अल्पसंख्यको को नागरिकता देना स्वागत योग्य। इस कानून से भारत के किसी भी अल्पसंख्यक की नागरिकता को किसी भी प्रकार का खतरा नहीं है। एक युवा होने के नाते हम सभी को इस कानून का अच्छे से अध्ययन करना चाहिए। देश में राजनीतिक स्वार्थ के चलते दंगे करवाने का पुरजोर प्रयास किया जा रहा है। हम सभी को इस कानून का अच्छे से अध्ययन करके समाज के अंदर फैल रही तमाम प्रकार की अफवाहों को खत्म कर लोगों को जागरूक करने का प्रयास करना चाहिए और समर्थन भी।
लेखक:- विशाल वर्मा (हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई अध्यक्ष)
कई तथाकथित बुद्धिजीवियों ने "संविधान खतरे में है" तथा "संविधान बचाओ" जैसे शीर्षक बनाकर इस कानून के विरोध बड़े - बड़े आर्टिकल लिख दिए। कहीं भारत की अर्थव्यवस्था के ऊपर खतरा तथा कुछ लोग भारत के मुस्लिम लोगों को इस कानून से खतरा है जैसे कई प्रकार के तर्कों को तोड़ मरोड़ कर इस कानून की आड़ में लोगों को भ्रमित कर देश भर में अराजकता का माहौल खड़ा करने का पुरजोर प्रयास कर रहे हैं। परन्तु इसके पीछे का जो सच है वो लोगों तक पहुंचने नहीं दिया जा रहा। वर्ष 2019 के अक्टूबर में जब अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रथम महिला निदेशक के रूप में क्रिस्टालिना जॉर्जीएवा ने कार्यभार ग्रहण करते समय कहा था वर्तमान समय में 90 प्रतिशत विश्व आज मंदी के दौर से गुजर रहा है। इस खुली अर्थव्यवस्था के दौर में भारत पर भी उसका असर होना स्वभाविक है। फिर भी आज भारत व्यापार करने की सुगमता में अंतरराष्ट्रीय रैंकिग पर 140 वें स्थान से 63वें स्थान पर पहुँच चुका है। परन्तु कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी इसे नागरिकता कानून के साथ जोड़कर नए-नए तर्क बनाकर इस कानून का विरोध कर रहे है।
आज हमें यह समझने की आवश्यकता है कि CAA भारत की प्राचीन परंपरा के अनुरूप ही है। इस कानून से भारत के किसी भी धर्म को मानने वाले को कोई खतरा नहीं है। CAA कानून में सबसे ज्यादा बवाल मुस्लिम समुदाय को लेकर किया जा रहा है जबकि इस पूरे एक्ट में कहीं भी "मुस्लिम'' शब्द का इस्तेमाल तक भी नहीं हुआ है। कुछ लोग इस बात को भारत की धर्म निरपेक्षता के ऊपर चोट बता रहे हैं कि हिन्दू, बौद्ध, सिक्ख ,इसाई, जैन और पारसी को इसमें शामिल किया गया परन्तु मुस्लिम को नहीं। अब इस बात को कुतर्कों के आधार पर तो अनेकों दिशाओं में मोड़ा जा सकता है लेकिन इसकी असल वजह कोई भी वामपंथी और कांग्रेसी स्वीकार नहीं कर रहा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनमोहन सिंह जी ने भी इसी कानून को पारित करने का प्रस्ताव 2003 में तत्कालीन गृह मंत्री आडवाणी जी के समक्ष रखा था। जिसमें बंगलादेश के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की सिफारिश की थी। देश की आजादी के पश्चात महात्मा गांधी जी ने भी 26 सितम्बर, 1947 को प्रार्थना सभा में कहा था कि पाकिस्तान के हिन्दू सिक्ख यदि भविष्य में पाकिस्तान में नहीं रहना चाहे तो वे भारत आ सकते हैं और भारत सरकार का ये कर्तव्य है कि उन्हें केवल भारत में शरण ही नहीं अपितु उनके जीवन को बेहतर करने की व्यवस्था को सुनिश्चित करे। आंकड़े बयां करते हैं कि विभाजन के बाद पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यको को किस तरह की अमानवीय यातनाएं झेलनी पड़ी। या तो जबरदस्ती उनका धर्मांतरण करवा दिया गया या फिर उन्हें लूटपाट कर कई तरीकों से प्रताड़ित किया गया। मनमोहन सरकार के समय एक आंकड़े के अनुसार भारत में पाकिस्तान के लगभग 1 लाख 14 हजार हिंदुओं ने नागरिकता के लिए आवेदन किया था। परन्तु आज वही कांग्रेस जो गांधी जी के आदर्शों पर चलने की बात करती है, उन्हीं महात्मा गांधी जी के उस बात को भुलाकर देश में अराजकता का माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। दूसरी तरफ सुखबीर बादल ने भी संसद में इस बात का जिक्र किया था कि अफगानिस्तान से लगभग 75000 सिक्ख भारत की नागरिकता लेना चाहते हैं।
यह सब बातें स्पष्ट करती हैं कि इन तीन देशों में अल्पसंख्यको को किस तरह की अमानवीय यातनाएं सहनी पड़ी, तमाम तरह के सितम और प्रताड़नाएं सहकर वे लोग भारत की नागरिकता की माँग कर रहे थे ताकि भविष्य में उनकी सन्तानें वो यातनाएँ न सहें। हैरानी तब होती है जब भारत में हर छोटी छोटी बात पर मानवाधिकार का ढिंढोरा पीटने वाले बुद्धिजीवी आज इस घटना पर चुप्पी साधे बैठे हैं। शायद उनके राजनीतिक चश्मे में इन लोगों के ऊपर हुए अत्याचार नजर नहीं आ रहे या फिर उनकी नजरों में ये अल्पसंख्यक मानव नहीं। नागरिकता कानून भारत की उस महान परम्परा को निभा रहा है जिसमें भारत इन तीन देशों में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित हुए लोगों को शरण दे रहा है। बंगलादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के प्रताड़ित अल्पसंख्यको को नागरिकता देना स्वागत योग्य। इस कानून से भारत के किसी भी अल्पसंख्यक की नागरिकता को किसी भी प्रकार का खतरा नहीं है। एक युवा होने के नाते हम सभी को इस कानून का अच्छे से अध्ययन करना चाहिए। देश में राजनीतिक स्वार्थ के चलते दंगे करवाने का पुरजोर प्रयास किया जा रहा है। हम सभी को इस कानून का अच्छे से अध्ययन करके समाज के अंदर फैल रही तमाम प्रकार की अफवाहों को खत्म कर लोगों को जागरूक करने का प्रयास करना चाहिए और समर्थन भी।
लेखक:- विशाल वर्मा (हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई अध्यक्ष)
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