स्वामी विवेकानंद के सपनों का भारत : रश्मि शर्मा


  स्वामी विवेकानंद एक ऐसे महापुरुष थे, जिनकी ओजस्वी  वाणी युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत का काम करती है। उन्होंने युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए जो चीजें लिखी है वह आज भी काफी प्रासंगिक है। उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त ना हो जाए। यह मंत्र स्वामी विवेकानंद जी ने ही भारतीयों को दिया था, जो आज भी भारतीयों को झकझोरता है। ब्रिटिश हुकूमत के वक्त युवाओं को आजादी के लिए दिया गया यह मंत्र आज भी भारतीय युवाओं के लिए मुश्किल घड़ी में मार्गदर्शन और प्रेरणा का स्रोत बनता है।
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था। इनके जन्म दिवस को हम हर साल 'राष्ट्रीय युवा दिवस' के रुप में मनाते हैं। स्वामी जी की ओजस्वी वाणी से भारत के युवा वर्ग में जागृति स्वत: ही आ जाती है। जब भारत पराधीन अंग्रेजों का ग़ुलाम था और गोरों का जुल्म  निरंतर बढ़ता जा रहा था, ऐसे में देश को जगाने का काम उनके उपरोक्त वाक्य ने किया था। विवेकानंद भारतीय युवा शक्ति को पहचानते थे। उनकी स्पष्ट धारणा थी कि देश के युवा ही देश का भविष्य होते हैं। आज 21वीं सदी के भारत में जहां भ्रष्टाचार और अपराध का साम्राज्य है तथा व्याप्त भ्रष्टाचार देश को खोखला कर रहा है, ऐसे में युवा शक्ति को जगाना उनको देश के कर्तव्य के प्रति सचेत करने का कार्य भी स्वामी जी का महामंत्र ही कर रहा है। 
विवेकानंद जी के संदेशो के 10 महामंत्र:-
1) उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए। 
2)ब्रह्मांड में समस्त शक्ति हमारे अंदर ही मौजूद है, वह हम खुद हैं, जिन्होंने खुद अपने हाथों से अपनी आंखें बंद कर ली है और हम चिल्लाते हैं कि अंधेरा है।
 3) हमारा कर्तव्य है कि हर संघर्ष करने वाले को प्रोत्साहित किया जाये, ताकि वह सपने को सच कर सके और जी सके।
4) हम वह हैं जो हमारे विचारों ने हमें बनाया है। इसीलिए आप जो भी सोचते हैं उसका ख्याल रखिए शब्द बाद में आते हैं, वे जिंदा रहते हैं और दूर तक जाते हैं। 
5) जीवन का कोई एक ध्येय बना लो और उस विचार को जीवन में समाहित कर लो। उस विचार को बार-बार सोचो, उसके सपने देखो, उसे जिओ, दिमाग, मांसपेशियों, नसों और शरीर के हर भाग में उस विचार को भर लो और बाकी विचारों को त्याग दो। यह सफल होने का राज है। सफलता का रास्ता यही है। 
6) जब तक तुम खुद पर भरोसा नहीं है, तब तक खुदा या भगवान पर भी भरोसा नहीं हो सकता। 7) यदि हम भगवान को इंसान और खुद में देख पाने में सक्षम नहीं है तो उसे ढूंढने कहां जा सकते हैं। 8) जितना हम दूसरों की मदद के लिए सामने आते हैं और मदद करते हैं उतना ही हमारे हमारा दिल निर्मल होता है, ऐसे लोगों में ईश्वर होता है।
 9) यह कभी मत सोचिए कि आत्मा के लिए कुछ भी असंभव है ऐसा सोचना सबसे बड़ा अधर्म है खुद को या दूसरों को कमजोर समझना ही दुनिया में एकमात्र पाप है। 
10) यह दुनिया बहुत   बड़ी व्यायामशाला शाला है,जहां हम स्वयं को मजबूत बनाने आते हैंl
 स्वामी जी अपने विचारों के जरिए स्ववेद और स्वधर्म के लिए अप्रतिम प्रेम और स्वाभिमान की ऊर्जा प्रवाहित कर जग शक्ति का संचार कर गए, जिससे भारतीय जन के मन में अपने ज्ञान, परंपरा, संस्कृति और विरासत का गर्व पूर्ण बोध हुआ। स्वामी जी की दृष्टि में समाज की बुनियादी इकाई मनुष्य था और उसके उत्थान के बिना वे देश व समाज का उत्थान अधूरा मानते थे। उनका दृष्टिकोण था कि राष्ट्र का वास्तविक पुनरुद्धार मनुष्य निर्माण से प्रारंभ होना चाहिए। मनुष्य में शक्ति का संचार होना चाहिए जिससे वे मानवीय दुर्बलता पर विजय प्राप्त कर प्रेम, आत्मसंयम, त्याग, सेवा एवं चरित्र के अपने सद्गुणों के जरिए उठ खड़ा होने का समर्थन जुटा सकेl वे सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा को एक बहुत बड़ा पाप मानते थे। 1893 में शिकागो में धर्म सम्मेलन में  उन्होंने स्पष्ट कहा था, " मेरी अवधारणा वेदांत के इस सत्य पर आधारित है कि विश्व की आत्मा एक और सर्वव्यापी है। पहले रोटी और फिर धर्म। लाखों लोग भूखे मर रहे हैं और हम उनके मस्तिष्क में धर्म पूछ रहे हैं। मैं ऐसे धर्म और ईश्वर में विश्वास नहीं करता जो अनाथों के मुंह में रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं रख सकताl"
 उन्होंने सम्मेलन में यूरोप और अमेरिका के धर्म विचार को को झकझोरते हुए कहा कि भारत की पहली आवश्यकता धर्म नहीं है। स्वामी जी गरीबी को सारे अनर्थ की जड़ मानते थे। इसलिए उन्होंने दुनिया में सामाजिक-आर्थिक न्याय और समता-समरसता पर समाज गढ़ने का संदेश दिया। ईश्वर भक्ति और धर्म साधना से बड़ा काम वे गरीबी दूर करने को मानते थे। उन्होंने एक पत्र में लिखा भी है, 'ईश्वर को कहां ढूंढने चले हो। ये सभी गरीब दु:खी और दुर्बल मनुष्य क्या ईश्वर नहीं है। इन्हीं की पूजा पहले क्यों नहीं करते?' वे इस बात पर बल देते थे कि हमें भारत को उठाना होगा। गरीबों को भोजन देना होगा और शिक्षा का विस्तार करना होगा।
स्वामी जी का मानना था कि मानवता के सत्य को पहचानना ही वास्तव में वेदांत है। स्वामी जी का मानना था कि यदि आप अपने जन्मदाताओं की पूजा नहीं कर सकते तो उस ईश्वर की कैसे करोगे जो निराकार है। 
 स्वामी जी इस बात के प्रबल हिमायती थे कि भारत का औद्योगिक विकास जापान की तरह विशेषताओं को सुरक्षित रखते हुए होना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि देश में माचिस फैक्ट्री और शोध संस्थान स्थापित किये जाएँ। यह उनके सुझाव का ही नतीजा है कि जमशेदजी टाटा ने आगे चलकर 'टाटा इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च एंड फंडामेंटल' की स्थापना की। उनकी इच्छा थी कि भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रमों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ वेदांत भी समाहित हो। उनका मानना था कि भौतिक विज्ञान मात्र अलौकिक समृद्धि दे सकता है, परंतु अध्यात्म विज्ञान शाश्वत जीवन के लिए परम आवश्यक है। 
स्वामी जी ने 3 भविष्यवाणियां की थी। जिनमें से दो भारत की स्वतंत्रता और रूस की श्रमिक क्रांति सिद्ध हो चुकी है। विवेकानंद जी की तीसरी भविष्यवाणी ये थी कि भारत एक बार फिर शक्ति और समृद्धि की महान ऊंचाइयों तक उठेगा। स्वामी जी का मातृभूमि को लेकर  तादात्म्य संपूर्ण था। वे स्वयंविश्व को 'घनीभूत भारत' कहते थे। स्वामी जी की शिष्या भगिनी निवेदिता ने कहा है कि:-
"भारत स्वामी जी का  गहनतम अनुराग रहा है, भारत उनके वक्ष पर धड़कता है, भारत उनकी नसों में स्पंदन करता है, भारत उनका दिव्य स्वप्न है, भारत उनका निशाकल्प है, वे भारत का रक्त मज़ा- मज्जा से से निर्मित साक्षात शरीर रुप है, zवे स्वयं भारत हैं।"

 रश्मि शर्मा
स्वामी विवेकानंद राजकीय महाविद्यालय घुमारवीं (ज़िला बिलासपुर)

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