स्वामी विवेकानंद के सपनों का भारत : रूशिल महाजन



भारत जब ब्रिटिश सरकार के अधीन था,तब ' उठो , जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए ' जैसा संदेश देकर भारतीयों को जगाने वाले महा पुरुष , जिन्होंने भारतीय ज्ञान एवं अध्यात्म का डंका सारी दुनिया में बजाया , ऐसे महान पुरुष स्वामी विवेकानन्द को कोन नहीं जानता ! भारतीय युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वे आज भी 60% से अधिक शिक्षित भारतीय युवाओं के आदर्श है।

स्वामी विवेकानंद ,जिनके  बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था , का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के सिमुलिया नामक स्थान  में हुआ था। उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त एक प्रख्यात अटॉर्नी थे। समृद्ध परिवार में जन्म लेने के कारण उन्होंने अच्छे स्कूलों में शिक्षा प्राप्त की तथा स्कूली शिक्षा के बाद कलकत्ता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला ले लिया। उस कॉलेज में पढ़ने के दौरान उनकी अध्यात्मिक भूक जागृत हूई और वे ईश्वर , विश्व , मानव इत्यादि के रहस्य जानने के लिए व्याकुल रहने लगे। 

इसी दौरान उन्हें किसी ने राम कृष्ण परमहंस के बारे में बताया , जिनकी विद्वता एवं प्रवचनों की चर्चा कलकत्ता की शिक्षण संस्थाओं के साथ - साथ संभ्रांत समाज में भी होने लगी थी। नरेंद्र नाथ ने भी उनसे मिलने का विचार किया। नरेंद्र नाथ ने परमहंस से अपनी पहली ही मुलाकात में प्रश्न किया ,"क्या आपने ईश्वर को देखा है?" परमहंस ने इस प्रश्न का मुस्कुराते हुए जवाब दिया ,"हां , मैने ईश्वर को बिल्कुल वैसे ही देखा है, जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूं ।" परमहंस के इस उत्तर से नरेंद्र नाथ न केवल संतुष्ट हो गए , बल्कि उसी समय उनको अपना गुरु भी मान लिया। इसी घटना के बाद उन्हों ने संन्यास का निर्णय लिया।

 संन्यास ग्रहण करने के बाद जब वे एक परिव्राजक के रूप में  भारत भ्रमण पर थे , तब खेतड़ी के महाराज ने उन्हें विवेकानंद नाम दिया। राम कृष्ण परमहंस से मिलने से पूर्व स्वामी विवकानन्द हरबर्ट स्पेंसर के नास्तिकवाद से प्रभावित थे। समय के साथ - साथ स्वामी विवेकानंद ने में नास्तिकवाद का विकास होता जा रहा था। स्वामी विवेकानंद जी ने तीन भविष्यवाणी की थी। सर्वप्रथम 1890 के दशक में उन्होंने कहा था भारत अकल्पनीय परिस्थितियों के बीच अगले 50 वर्षों में ही स्वाधीन हो जाएगा। जब उन्होंने यह बात कही तब कुछ लोगों ने इस पर ध्यान दिया। उस समय ऐसा होने की कोई संभावना भी नहीं दिख रही थी। 

अधिकांश लोग अंग्रेजों द्वारा शिक्षित होकर संतुष्ट थे। उन दिनों लोगों में शायद ही कोई राजनीतिक चेतना दिखाई पड़ती थी। उन्हें राजनीतिक स्वाधीनता की कोई धारणा नहीं थी। ऐसी पृष्ठभूमि में स्वामी विवेकानंद ने भविष्यवाणी की कि भारत अगले 50 वर्षों में स्वाधीन हो जाएगा और यह सत्य सिद्ध दी हुई। 

स्वामी विवेकानंद इतिहास के अच्छे अध्येता थे और ऐतिहासिक शक्तियों के विषय में उनकी अंतर्दृष्टि बहुत गहरी थी। विवेकानंद ने ही एक और भविष्यवाणी की थी जिसका सत्य सिद्ध होना शेष है। उन्होंने कहा था भारत एक बार फिर समृद्धि तथा शक्ति की महान उचाईयों पर उठेगा और अपने समस्त प्राचीन गौरव को पीछे छोड़ जाएगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भारत का विश्व गुरु बनना केवल भारत ही नहीं, अपितु विश्व के हित में हैं। 
विवेकानंद ने कहा समाज का नेतृत्व चाहे विद्या बल से प्राप्त हुआ हो चाहे बाहुबल से, पर शक्ति का आधार जनता ही होती है। उनका मानना था कि प्रजा से शासक वर्ग जितना ही अलग रहेगा, वह उतना ही दुर्बल होगी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि यथार्थ भारत झोपड़ी में बसता है, गांव में बसता है। इसलिए भारत की उन्नति भी झोपड़ी और गांव में रहने वाले आम जनता की प्रगति पर निर्भर है। 

हमारा पहला कर्तव्य दीनहीन, निर्धन, निरक्षर, किसानों तथा श्रमिकों के चिंतन का है। उनके लिए सब करने के उपरांत ही संबंधों की बारी आने चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने कहा है अतीत से ही भविष्य बनता है।
हमारे पूर्वज महान थे। हम भारत के गौरवशाली अतीत का जितना ही अध्ययन करेंगे हमारा भविष्य उतना ही उज्जवल होगा। भारत में श्रीराम, कृष्ण, महावीर, हनुमान तथा श्रीरामकृष्ण जैसे अनेक इष्ट और महापुरुषों के आदर्श उपस्थित हैं। 

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि धर्म को हानि पहुंचाए बिना ही जनता की उन्नति की जा सकती है। किसी को आदर्श बना लो, यदि तुम धर्म को फेंककर राजनीति समाजनीति अथवा अन्य किसी दूसरी नीति को जीवन शक्ति का केंद्र बनाने में सफल हो जाओ तो उसका फल यह होगा कि तुम्हारा अस्तित्व नहींं रह जाएगा। भारत में हजारों वर्षों से धार्मिक आदर्श की धारा प्रवाहित प्रवाहित हो रही है। 
भारत का वायुमंडल इस धार्मिक आदर्श से शताब्दी तक पूर्ण रहकर जगमगाता रहा है। हम इसी धार्मिक आदर्श के भीतर पैदा हुए और पले हैं। यहां तक कि धर्म हमारे जन्म से ही हमारे रक्त में मिल गया है, जीवन शक्ति बन गया है। यह धर्म ही है जो हमें सिखाता है कि संसार के सारे प्राणी हमारी आत्मा के विविध रुप ही हैं। 

सच्चाई यह भी है कि हमारे लोगों ने धर्म को समाज में सही रुप में उपयोग भी नहीं किया है। अत: भारत में किसी प्रकार का सुधार या उन्नति की चेष्टा करने के पहले धर्म को अपनाने की आवश्यकता है। भारत को राजनीतिक विचारों से प्रेरित करने के पहले जरुरी है कि उसमें आध्यात्मिक विचारों की बाढ़ ला दी जाए। शिक्षा हमारी मूलभूत मूलभूत आवश्यकता है। 

स्वामी विवेकानंद ने कहा है जिस राज्य की जनता में विद्या बुद्धि का जितना अधिक प्रचार है वह राष्ट्र उतना ही उन्नत है। भारत के सर्वनाश का मुख्य कारण यही है कि देश की सारी विद्या बुद्धि राज्य शासन और धन के बल पर मु_ी पर लोगों के एकाधिकार में रखी गई है। यदि हमें फिर से उन्नति करना है तो हम को उसी मार्ग पर चलना होगा अर्थात जनता में विद्या का प्रचार करना होगा। भारत के लोगों को यदि आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा नहीं दी जाएगी, तो सारे संसार की दौलत से भारत के एक छोटे से गांव को भी सहायता नहीं की जा सकती। नैतिक तथा बौद्धिक दोनों ही प्रकार की शिक्षा प्रदान करना हमारा पहला कार्य होना चाहिए। 

स्वामीजी का स्वप्न था कि उन्हें 1000 तेजस्वी युवा मिल जाएं तो वह भारत को विश्व शिखर पर पहुंचा सकते हैं। मेरा विश्वास युवा पीढ़ी, नई पीढ़ी में है। मेरे कार्यकर्ता इनमें से आएंगे और वह सिंहों की भांति समस्याओं का हल निकालेंगे। ऐसे युवाओं में और किसी बात की जरूरत नहीं है। बस केवल प्रेम, सेवा, आत्मविश्वास, धैर्य और राष्ट्र के प्रति असीम श्रद्धा होना चाहिए। 

नारी जागरण पर स्वामी विवेकानंद कहते हैं स्त्रियों की पूजा करके ही सभी राष्ट्र बड़े बने हैं। जिस देश में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वह देश या राष्ट्र कभी बड़ा नहीं बन सका है और भविष्य में कभी बड़ा भी नहीं बन सकेगा। हम देख रहे हैं कि नौ देवियों लक्ष्मी और सरस्वती को मां मानकर पूजने वाले सीता जैसे आदर्श की गाथा घर-घर में गाने वाले यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता को हृदय में बसाने वाले भारत में नारी को यथोचित सम्मान प्राप्त नहीं है। 

हमारी मानसिकता बदल रही है किंतु उसकी गति बहुत धीमी है यदि हम देश की तरक्की चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी सोच को बदल कर नारी जागरण और उत्कर्ष पर चिंतन और त्वरित क्रियाशीलता दिखानी भी होगी। 
ग्रामीण आदिवासी स्त्रियों की वर्तमान दशा में उद्धार करना होगा, आम जनता को जगाना होगा, तभी तो भारत वर्ष का कल्याण होगा। अपनी आध्यात्मिकता और दार्शनिकता से हमें जगत को जीतना होगा। संसार में मानवता को जीवित रखने का और कोई उपाय नहीं है।

स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि हमें पसंद हो या न हो लेकिन धर्म और
अध्यात्मिकता ही हमारे राष्ट्रीय जीवन के उज्ज्वल भविष्य के आधार स्तम्भ हैं।एक सुबह ऐसी भी होगी 'सर्व धर्मान पारित्यज्यम्‌' का निडर उद्घोष करने वाले राम-कृष्ण की जमीं के सामान्य लोग किसी भी द्वेषपूर्ण सीख को स्वीकारने से पूरी तरह इंकार कर देंगे और तब स्वामी विवेकानंद का सपना भी उनका अपना सपना होगा। 

'मेरे सपनों के हिन्दुस्तान की यदि आत्मा 'वेदांत' होगी तो शरीर 'इस्लाम' होगा। शरीर के बिना आत्मा के अस्तित्व का विचार कोई भी नहीं करेगा।' 

रूशिल महाजन
कक्षा 8वीं
एमसीएम डीएवी वरिष्ठ माधयमिक पाठशाला
बाघनी , नूरपुर

Comments